उज्जैन नगरी महाँकाल का रहस्य
इतिहास- यह महान विक्रमादित्य के राज्य् कि राजधानी थी । उज्जैन को कालिदास कि नगरी के नाम से भी जाना जाता है ।यहाँ शिव के 12 ज्योतिर्लिगो मे एक महाँकाल उज्जैन नगरी मे स्थित है । मना जाता है कि उज्जैन नगरी दो हज़ार साल पुरानी है । उज्जैन् कि एतिहसिक्त का प्रमाण ई.पु सन 600 वर्स् पुर्व् मिलता है।उज्जैय्नि के प्रचिन् इतिहास के विषय मे अनेक भ्रन्तिया है । यहाँ निस्चित् पुर्वक् नहीं कहा जा सकता है कि उज्जैय्नि कि निव् सर्व् प्रथम किसने डाली । कतिपय विध्य्वन् जन् अस्छुगमि को उज्जैयनि को बसाने वाला मानते है।
किंतु प्रमाणिकता के आधार पर यह इतिहास भी मोन है ।स्कन्द् पुराण के अनुसार त्रिपुर् राक्षस का वध् करके भगवान शंकर जी ने उज्जैयनि बसाई ।अवन्ति उत्तर और दक्षिण दोनों भागो मे विभक्त् होकर उत्तरी भाग कि राजधानी उज्जैयनि है तथा दक्षिण भाग कि राजधानी महिष्मति थी।उस समय छन्द्रप्रघोत् नामक सम्राट सिहासनारुत्र् थे।मौर्य साम्राज्य के अबुधय् होने पर मगध सम्राट बिन्दुसार् ने पुत्र अशोक उज्जैयनि के समय नियुक्त हुए । सत्वि शताब्दी मे उज्जैन के कन्नौज के हर्स्वर्धन् साम्राज्य मे विलिन् हो गया।उस काल मे उज्जैन का सर्वगिन् विकास भी होता रहा ।रनोजि सिंधिया ने महन्कलेस्वर् मंदिर का जिर्नोद्वार् किया।उज्जैय्नि मे आज भी अनेक धार्मिक पौराणिक तथा एतिहसिक् स्थान है।जिसमें महन्कलेस्वर् मंदिर अत्यधिक प्रसिद्ध है।
उपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण में सिद्ध हुआ है कि शंकर जी की माता श्री दुर्गा तथा पिता सदाशिव अर्थात "काल ब्रम्हा" है ।
उज्जैन जाने से क्या होता है ?
महाकाल की इस नगरी के पांव पखारती पवित्र शिप्रा नदी जिसे मोक्षदायिनी शिप्रा भी कहते है ।
धर्मग्रंथो के मुताबिक उज्जैन जीवन और मोत के नर्क को खत्म कर भक्तों को मोक्ष देता है और जहाँ के कण कण में महाँकाल यानी शिव का वास है ।
शिव की इसी नगरी में बसा है एक ऐसा मंदिर जहा स्वयं कालभैरव रहते है ।
महाँकाल की आरती कितनी बार होती है ?
महाँकाल की 6 बार आरती होती है जिसमे सबसे खास मानी जाती है । "भस्म आरती"
सबसे पहले भस्म आरती फिर दूसरी आरती में भगवान शिव को घटाटोप स्वरूप दिया जाता है ।
तीसरी आरती में शिवलिंग को हनुमान जी का रूप दिया जाता है ।
चौथी आरती में भगवान शिव का शेषनाग अवतार देखने को मिलता है ।
पांचवी आरती में शिव को दूल्हे का रूप दिया जाता है ।
और छठी आरती शयन आरती होती है । इसमें शिव खुद के स्वरूप में होते है ।
महाकाल और शिव में क्या अंतर है ?
महाकाल ओर शिव में कोई अंतर नही है हम उन्हें शिव कहे शंकर कहे भोलेनाथ कहे या महेश कहे सब एक ही भगवान के अलग अलग नाम है।
महाकाल कि क्या विशेषताए है
महन्कलेस्वर् कि मूर्ति दक्शिन्मुखि होने के कारण द्क्शिनमुखि मानी जाती है।यह एक् अनूठी विशेषताए है।जिसे तांत्रिक परम्परा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिगो मे पाया जाता है । महाँकाल मंदिर के ऊपर गर्भ्ग्रह् मे ओम्करेस्वर् शिव कि मुर्ति प्रतिस्थित् होती है।
महाँकाल के गुरु कौन थे ?
अनेक पिता आदि रूद्र भगवान। महान्काल् ना केवल भगवान शिव अपितु अन्य सभी महरुद्रो के गुरु थे ।आदि रुद्र् भगवान महाँकाल कि रुद्र् व्यव्स्था एव्म् गुरुमन्दल् के प्रणेता रहे थे ।उन्हीं कि प्रणेता से भगवान शिव गुरुमन्दल् गुरुकुल कि स्थापना कि थी।
महाँकाल का जन्म
शिव पुराण मे लिखा है ।कि भगवान शिव संभु है। यानि उनका जन्म अपने आप हुआ है ।वहीं विष्णु पुराण मे लिखा है कि विश्नु के माथे से निकलते तेज से शिव का जन्म् हुआ है ।
Very good
ReplyDeleteजय श्री महाँकाल
DeleteJay shree mahankal
ReplyDeleteJay shree Mhankal
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