हरियाली अमावस्या क्यों मनाते है ?
श्रावण आमावस्या को हरियाली अमावस्या के रूप मे मनाया जाता हैं।यह त्योहार श्रावण मे प्रकृति पर आयी बाहर कि खिशियो का जश्न है।इसका मुख्य उद्देश्य लोगो को प्रकृति के करीब लाना है।इसके पीछे व्रक्षो को सरक्षित करने कि भावना निहित है। पर्यावरण को शुद्ध बनाये रखने के लिए हि हरियाली अमावस्या के दिन व्रक्षारोपन् करने कि प्रथा बनी।इस दिन कई शहरो और गावो मे हरियाली अमावस्या के मेलो का आयोजन किया जाता है।तो कहीं दंगल का आयोजन भी किया जाता है।इसमें सभी व्रर्ग् के लोगो के साथ युवा भी शामिल हो उत्त्सव् और आनंद से पर्व मनाते है।
गुड व् गेंहू कि धानी का प्रसाद दिया जाता हैं।स्त्री और पुरुष इस दिन सभी गेंहू,ज्वार् व् मक्का कि सांकेतिक बुआई करते है।जिसमें कृषि उत्पादन कि स्तिथी क्या होगी का अनुमान लगाया जाता है।
मध्यप्रदेश मे मालवा ,नीमाद ,राजस्थान् के दक्षिण पक्षिम् ,गुजरात के पुरोत्तर् क्षेत्रो,उत्तरप्रदेश के दक्षिण पक्षिम् इलाकों के साथ हि हरियाणा व् पंजाब मे हरियाली आमावस्या को इसी तरह पर्व् के रूप मे मनाया जाता है।
भगवान शिव के प्रिय स्रान् मास मे पड़ने वाली हरियाली अमावस्या के रुप् मे माना जाता है।इस पावन पर्व् पर भगवान शिव के साथ् माता पर्वती और देवी देवताओं के सामान पूजनीय पेड़ पौधों कि पूजा और उसे लगाने का बहुत महत्व माना गया है।इस दिन किसी पूजा या उपाय् को करने पर कुंडली से जुड़े तमाम तरह के दोश् दूर व हर तरह कि कामनाये पूरी होती है।आमावस्या का क्या महत्व है।
हिन्दू धर्म के सावन महा कि आमावस्या तिथि को विशेष तिथि माना जाता है। श्रावण महा का महीना भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय होता है।इस महा मे पड़ने वाली आमावस्या इसलिए भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है।मान्यता यह है कि इस दिन पितरो को पिंडदान्,श्राद कर्म करने से पितरो को मोक्ष् कि प्राप्ति होती है।
पूर्णिमा और आमावस्या को लेकर बहुत से लोगो मे डर है । खासकर् आमावस्या को लेकर ज्यादा डर है। वर्ष मे बारह पूर्णिमा और बारह आमावस्या होती है और सभी का अलग अलग महत्व होता है।
जब दान्वि आत्माये ज्यादा सक्रिय रहती है ।तब मनुस्यो मे भी दन्वि प्रव्त्ति का असर बढ़ जाता है।इसलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिनों मे मनुष्य के मन ,मस्तिष्क धर्म कि और मोड़ दिया जाता है।आमावस्या के दिन भूत,प्रेत ,पितृ,पिसाच्,निसाचर् ,जीव जंतु और देत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त होते है
आमावस्या का मतलब क्या होता है।
आमावस्या। हिन्दू प्नचाग के अनुसार माह कि 30 वी और कृष्ण पक्ष् कि अंतिम तिथि है।इस दिन का भारतीय जनजिवन मे अत्यधिक मह्त्व् है हर महा कि आमावस्या को कोई ना कोई पर्व अव्स्य मनाया जाता है।सोमवार को पड़ने वाली आमावस्या को सोमवति आमावस्या कहते है।
आमावस्या का क्या रहस्य है।
अमावस्या के दिन चंद्र नहीं दिखाई देता है।अर्थात जिसका छय् और उदय नहीं होता है । उसे आमावस्या कहते है। तब इसे 'कुहू' आमावस्या भी कहा जाता है।आमावस्या माह मे एक बार हि आती है।शास्त्रों मे आमावस्या तिथि का स्वामी पित्रदेव् को माना जाता है।आमावस्या सूर्य और चंद्र के मिलान का काल है।
आमावस्या के दिन कौन से कार्य नहीं करने चाहिए ।
आमावस्या के दिन किसी दूसरे का अन्न खाने से पुण्यहास् होता है।आमावस्या के दिन किसी के घर भोजन भी नहीं करना चाहिए ।आमावस्या को सदाचरण और भर्ह्म्चरन् का पालन करना चाहिए ।आमावस्या पर क्रोध ,हिन्सा ,अनेतिक् कार्य, मास मदिरा का सेवन, स्त्री से शारिरिक सम्बन्ध निषेध है ।`
इस दिन किसी भी प्रकार तामसिक वस्तुओ का सेवन नहीं करना चाहिए ।
इस दिन शराब आदि नशे से दूर रहना चाहिए।इसके शरीर पर हि नहीं आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते है।
जानकर लोग तो यह कहते है कि चोदस आमावस्या और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने मे हि भलाई है।
पितृ दोष कि शांति के लिए
अगर आपकी कुंडली मे पितृ दोष है।तो हरियाली आमावस्या को एक आसान उपाए करने से उसके अशुभ प्रभाव कम हो जाते है। आमावस्या के दिन किसी भी नदी मे स्नान करने या हाथ मे काले तिल सुबह अर्ध्य् करें।सूर्योदय सूर्य देवता से पितरो कि आत्मा कि शांति के लिए प्रार्थ्ना करें।सूर्य भी पितृ देवता का हि स्वरुप् होते है ।इससे आपकी परेशानीय दूर हो सकती है