शुक्राणु जनन(spermetogenesis)
वृषण की शुक्र जनन नलिका की जनन कोशिकाएं अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा शुक्राणुद्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करती है इस क्रिया को शुक्राणु जनन कहते हैं जनन स्तर की सभी कोशिकाएं मैं शुक्राणु जनन की छमता पाई जाती हैलेकिन इनकी कुछ कोशिकाएं ही शुक्राणु जनन करती है जोकोशिकाएं शुक्राणु जनन करती हैउन्हें प्राथमिक जनन कोशिका कहते हैं इन आदि कोशिकाओं में शुक्राणु जनन की क्रिया दो चरणों में पूरी होती है
स्पर्मेटिड का निर्माण (formation of spermatid)
सर्वप्रथम आदि या प्राथमिक जनन कोशिकाएं अर्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित कोशिका ए बनाती है जिन्हें स्पर्मेटिड कहते हैं यह क्रिया तीन चरणों में होती है
(a). गुनण प्रवस्था( multiplication phase) -इस प्रवस्था मे आदि जनन कोशिकाएं बार-बार समसूत्री विभाजन के द्वारा कुछ कोशिकाएं बनाती हैजिन्हें स्पर्मेटोगोनिया कहते हैं
(b). वृद्धि प्रवस्था (growth phase)- इस प्रवस्था में इस परमेटोगोनिया भोज्य पदार्थों को एकत्रित करके आकार में बड़ी हो जाती हैअब इन्हें प्राथमिक इस पर मेट्रो साइट कहते हैं
(c).परिपक्वन प्रवस्था (maturation phase)- इस प्रवस्था में प्राथमिक इस पर मेट्रो साइट दो बार विभाजित होता है। प्रथम विभाजन अर्धसूत्री विभाजन होता है जिनमें दो अगुणित कोशिका ए बनती हैजिन्हें द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट कहते हैं कुछ समय बाद इनमें दितीय परिपक्वन होता है जिसके बाद बनी कोशिकाओं को इसपर्मेटिड कहते हैंइस प्रकार परिपक्व प्रवस्था को पूर्ण होने तक एक आधी जनन कोशिका से चार अगुनीत स्पर्मेटिड बन जाते हैं
स्पर्मेटिड का कायन्तरण(metomorphosis of spermetid) - इस अवस्था में गोलाकार स्पर्मेटिडकुछ अचानक हुए परिवर्तनों के फलस्वरूप पूर्ण विकसित चल शुक्राणु मे परिवर्तन हो जाता है।इस अवस्था मे स्पर्मेटिड लंबाई में बढ़ता है सैंटरोसोम दो स्ंट्रीओलस मैं बट जाता है। इनमें से एक केंद्रक से थोड़ा दूर चला जाता है।पहले को स्मिपस्थ् (proximal) तथा दूसरे को दुर्स्थ् (distal) कहते है दुरस्थ् से हि शुक्राणुओ मैं कसाभिका के विकास के लिए अच्छीय तंतु (axial filament)निकलते हैं और शुक्राणु मे कशभिका अर्थात पूछ का निर्माण करते हैं स्पर्मेटिडके सभी माइटोकॉन्ड्रिया दूरस्थ सेंट्रियोल के चारों तरफ समेकित होकर एक अक्षीय आवरण बना देते हैंजो शुक्राणुओं को ऊर्जा देता है इस आवरण को नेबेनकर्म (nebenkerm) कहते है स्पर्मेटिड का गॉल्जीकाय केंद्रक के अग्रहोतीहे एक टॉप जैसी रचना एक्रोसोम बना देता है इसी के साथ स्पर्मेटिड. का जल सुख जाता हैऔर यह हल्का होकर पूर्ण विकसित शुक्राणु मे रुपांतरित हो जाता है स्त्नियो के परिपक्व शुक्राणु शुक्राणुजनन नलिका की सरटोली कोशिका मै धसे रहते हैंऔर उसी से पोषण प्राप्त होता है
शुक्राणु की संरचना(structure of sperm)- यह एक परिपक्व सूक्ष्म,चल, पतली (100 मिमी) लंबी रचना है लगभग सभी जंतुओं के शुक्राणु रचना मैं एक जैसे होते हैं एक परिपक्व स्त्नी के शुक्राणुओं मै निम्नलिखित तीन भाग पाये जाते हैं
1. सिर(head)- शुक्राणु का अग्र भाग सिर कहलाता है। इसकी रचना प्राय: तैरने के अनुकूल होती है अर्थात इसका आकर् सन्क्वारा होता है सिर के अगले भाग पर् एक्रोसोम(acrosome) नामक रचना पाई जाती है जो गॉल्जीकाय की बनी होती है।यह शुक्राणुओं को अंडाणु भेदन मे सहायता करती है।सिर का शेष भाग केंद्र को घेरे रहता है केंद्रक के चारों तरफ कोशिका द्रव्य की पतली स्तर पाई जाती हैं। केंद्रक के पश्च भाग मैं समीपस्थ सेंट्रियोल (proximal centriole) पाया जाता है जो निषेचित अंडाणु के विभाजन को शुरू करता है
2. मध्य भाग( middile piece) - यह सिर के ठीक पीछे का भाग होता है जिसमें दूरस्थ सेंट्रलयोल फ्लेजिलम के आधारितकाय (basal body) का कार्य करता है। इसमें स्थित अछिय तंतु के चारो तरफ माइटोकॉन्ड्रिया का आवरण पाया जाता हैजो शुक्राणुओं के प्रचलन मैं लगने वाली ऊर्जा कोे फ्लेजिलम् को देता है।मध्य भाग केचारों तरफ भी जीवद्रव्य का एक पतला आवरण पाया जाता है।
3. पूछ(tail)- यहशुक्राणु का सबसे पिछला, लंबा व पतला भाग होता है। जिसकी सहायता से शुक्राणु प्रचलन करते हैं इसके मध्य में अक्छिय् तंतु (axil philament)पाया जाता हैजिसके चारों तरफ एकदम अग्र भाग में माइटोकांड्रिया लेकिन शेष भाग में कोशिका द्रव्य का ही एक आक्षद (sheath) पाया जाता है इसके पक्ष भाग में अछिय तंतु के चारों तरफ कोई आच्छद नहीं पाया जाता है।
अंडाणु जनन (oogenesis)
अंडाशय की जन्म कोशिकाओं मेंअर्धसूत्री विभाजन के द्वाराअंडाणु बनाने की प्रक्रिया कोअंडाणु जनन कहते हैंयह क्रिया बहुत लंबे समय तक चलती है और मादा की भ्रूणीय् अवस्था से शुरू होती हैऔर 40 से 45वर्ष की उम्र तक चलती हैकभी-कभी यह 55 साल की उम्र तकभी चलती है मादा में 1 महीने में केवलएक ही अंडाणु परिपक्व होता है अगर एक पहले माह में बाये अंडाशय का परिपक्व हुआ है तो दूसरे माह में दाहिने काअंडाणु परिपक्व होता हैअंडाणु जनन में निम्नलिखित तीन अवस्थाएं पाई जाती है
1. प्रोलीइफरेशन प्रवस्था(proliferation phase)- यह अवस्था उसी समय होती है जब माता फिटस( foetus) अर्थात मां के गर्भ में लगभग 6 माह की होती है इस अवस्था में अंडाशय के जनन स्थर की कोशिकाएं विभाजित होकर अंडाशय की गुहा में कोशिका कुछ बना देती हैजिसे पुट्टीका(follicle) कहते हैं इस पुटिका की एक कोशिका इसी अवस्था में थोड़ी बड़ी हो जाती है जिसे उगोनियम कहते हैं
2. वृद्धि प्रवस्था(growth phase)- यह अवस्था भी जब मादाजब मादा गर्भ में रहती है तब पूरी हो जाती है इस अवस्था में उगोनियम आकार में (भोज्य पदार्थों को एकत्र कर लेने के कारण) बड़ी हो जाती है अब इसे प्राथमिक उस साइड कहत है।
3. परिपक्वन प्रव्स्था(maturation phase)-यह प्रवस्था मादा में11 से 13 वर्ष की उम्रसे लगभग 45की उम्र तक होती है इस अवस्था मेंप्राथमिक उसाइड में दो विभाजन होते हैंऔर यह परिपक्व अंडाणु में परिवर्तित हो जाता है इस प्रवस्था का पहला विभाजन अर्धसूत्री है यह विभाजन उस समय होता है। जब प्राथमिक उसाइट डिंबपुटीका के अंदर होता है इस विभाजन के कारण दो असमान कोशिकाएं बनती है बड़ी कोशिका द्वितीयक उसाइट( secondry oocyte) और छोटी कोशिका प्रथम ध्रुवीय काय(frist polar body) कहलाती है दितीयक परिपक्वन विभाजन अंडोत्सर्ग के बाद होता है। जिसमें द्वितीयक उसाइड असमान रूप से विभाजित होकर एक बड़ी कोशिका अंडाणु(ovum) तथा एक छोटी कोशिका दितीयक ध्रुवीयकाय बनाती है सभी ध्रुवीय काय विलुप्त हो जाते हैं कभी-कभी प्रथम ध्रुवीय काय विभाजित होकर दो और द्वितीयक ध्रुवीयकाय बनाता हैइस प्रकार कुल तीन ध्रुवीय काय बनते हैं ऐसा इसलिए होता हैकी अंडाणु को पर्याप्तमात्रा में पोषक पदार्थ मिल सके। दीत्तीय परिपक्वन विभाजन निषेचन के थोड़ा हीअंडर वाहिनी मे होता है।
अंडाणु की संरचना(stucture of ovum)
मनुष्य का अंडाणु दूसरे स्तनीयो के समान ही गोल और अचल होता हैइसमें योक् (yolk) नहीं पाया जाता है बल्कि इसके अंदर कोशिका द्रव्यबहुत अधिक मात्रा मेंभरा रहता है कोशिकाद्रव्य के मध्य में एक अगुणित केंद्रक पाया जाता है। पूरा अंडाणु एक स्त्रावी पारदर्शक आ कोशिकीय झिल्ली से घिरा रहता है जिसे जोना पेलिसिडा (zona pellucida) कहते है इस झिल्ली के चारों तरफ पुटिका कोशिकाए अवशेशि रूप में अनियमित रूप सेस्थित होती है।इस स्तर को कोरोना रेडीएटा (corona radiata) कहते हैं ।कोरोना रेडिएटा स्तर की कोशिकाएं अंडोत्सर्ग के समय भी अंडाणु के चारों तरफ स्थित होती है।और धीरे-धीरे निषेचन के समय तक विलुप्त हो जाती है।मनुष्य का अंडाणु अपितकी (alecithal) होता हैअर्थात इसमे पीतक( yolk) नहीं होता है